क्यों रेल गाड़ी मै इतनी गन्दगी दिखाई देती है .....................क्यों प्लेन इतना साफ़ होता है यही सवाल आज मुझे फिर लिखने पर मजबूर कर रहा है | आप किस तरफ है ? Necessity is mother of invention यही कहते है न | लोग कही न कही से अपना रास्ता निकल ही लेते है फिर चाहे वो रेल हो प्लेन हो या फिर दिल्ली की शान मेट्रो हो :- मेट्रो मै थूकना एक दंडनीय अपराध है पर एक भाई साहब खाए हुए पान घुश गए मेट्रो मै मैंने सोचा अब ये थुकेगे कहा,
साहब बड़ी बेसब्री से मेट्रो स्टेशन का इन्तजार कर रहे थे अचानक दरवाजा खुला साहब के चहरे पर खुसी उमड़ आयी मै समझ नही पाया की क्यों? उनका फुला हुआ मुह उर उसमे समायी पीक की बड़ी बड़ी लहरे बहार लिकने को मजबूर थी उन्होंने दरवाजो और स्टेशन के बीचो बीच मै पीक का सागर निकल दिया और चैन की सास ली .... उस दिन से थूकना एक अपराध नही एक रास्ता बन गया लोगो के लिए यही क्रम चलता रहा तो वो दिन दूर नही जब हम भी मेट्रो की तुलना रेल से करने लगेगे ...जागो दिल्ली की जनता बचा लो इस मेट्रो को इन थूकने वालो से ....सिक्यूरिटी क्या चेक करती है पता नही?...खैर ये एक सुरुआत है मेट्रो को गंध करने की पर हम ऐसा होने नही देगे |
अपने विचार और सुझाव दे || मेट्रो चली रेल की चाल
मैट्रो...रफ़्तार जिंदगी की
Wednesday, July 20, 2011
Tuesday, June 7, 2011
आज फिर वाही भागमभाग थी ऐसी भागम भाग का फायदा उठाते उए एक वृद्ध महिला अपना भानुमती का पिटारा बिना स्कैन करवाए लोगो के बीच से जल्दी जल्दी निकली जा रही थी ,सायद टाइम कम था उनके पास . माता जी पर कही जल्दी पहुचने की धुन में थी. पर हमारे देश के वीर जवान ने देख लिया और कहा , माता जी आपके बैग मै क्या है, माताजी झल्लाते हुए बोली - ले, कर ले चेक' कुछ भी नही है. मै बम नही लिए हुए हूँ . ले देख ले .......यह द्रश्य जहाँ हाश्य पैदा करता है वही कुछ और भी इशारा करता है...हमारे बुजुर्गवार नई टेक्नोलोजी तो तारतम्य बैठाते है. पर ख़ुशी होती है की बे भी युवाओ के साथ कदम ताल मिलते है...
आप का क्या कहना है ?
Sunday, June 5, 2011
मेट्रो ..रफ़्तार जिंदगी की...
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आज मुझे दिल्ली में आए 2 वर्ष हो चुके। कुछ रोजी-रोटी की तलाष या अच्छे कॅरियर का दबाव। यहां हम भागते जा रहे है। कभी बस, कभी आटो, या फिर दिल्ली की जीवन रेखा कही जानी वाली मेट्रो । फिर भी इस भागमभाग में मुस्कराने के पल बेषुमार मिल ही जाते है। मेरा औसतन डेढ़ से दो घंटा मेट्रो में बीतता है। रोज ही अजनबी चेहरे देखता और मुस्कराता आता जाता हूं। इस रोजी की यात्रा में मुझे कुछ षरारती, कुछ सहयोगी या फिर कुछ अडि़यल लोग यहां मिलते रहते है। मेट्रो में बिताये इन्हीं पलों, मिनटों, घंटों को मैं आप सभी के साथ बाटना चाहता हूं। साथ ही अपेक्षा करूंगा कि आप भी मेरे साथ अपने इसी प्रकार के अनुभवों को सभी के साथ बांटे, चाहे जब...मेरे ब्लॉग मेट्रो ..रफ़्तार जिंदगी की...
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